सितंबर 01, नई दिल्ली।
चीन के तियानजिन में आयोजित SCO शिखर सम्मेलन 2025 के दौरान हुई पीएम मोदी पुतिन मुलाकात और राष्ट्रपति शी जिनपिंग से चर्चा ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में नया मोड़ ला दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर तस्वीर साझा करते हुए लिखा – “तियानजिन में बातचीत जारी!”
चीन के तियानजिन शहर में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन 2025 ने वैश्विक राजनीति में एक नया अध्याय जोड़ दिया है। इस सम्मेलन की सबसे बड़ी सुर्खी रही भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से हुई मुलाकात। पीएम मोदी ने स्वयं सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर इस मुलाकात की तस्वीरें साझा करते हुए लिखा – “तियानजिन में बातचीत जारी! एससीओ शिखर सम्मेलन के दौरान राष्ट्रपति पुतिन और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ विचारों का आदान-प्रदान।”

यह तस्वीर और संदेश न केवल भारत, रूस और चीन के बीच बढ़ते कूटनीतिक संवाद का प्रतीक है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि बदलते “वैश्विक राजनीति का बदलता संतुलन” हालात में भारत अपनी विदेश नीति को किस तरह मजबूती के साथ आगे बढ़ा रहा है।
SCO शिखर सम्मेलन 2025: एशिया का बड़ा मंच
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की स्थापना 2001 में हुई थी और भारत 2017 में इसका स्थायी सदस्य बना। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य क्षेत्रीय सुरक्षा, आर्थिक सहयोग और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना है।
2025 का शिखर सम्मेलन चीन के ऐतिहासिक शहर तियानजिन में आयोजित हुआ, जिसमें आठ स्थायी सदस्य देशों – भारत, रूस, चीन, पाकिस्तान, कज़ाख़स्तान, उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान – के राष्ट्राध्यक्षों ने हिस्सा लिया। इसके अलावा कई पर्यवेक्षक देशों और साझेदार संगठनों ने भी उपस्थिति दर्ज कराई।
इस बार का सम्मेलन खास इसलिए भी माना जा रहा है क्योंकि यूक्रेन संकट, वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा, इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में बढ़ते तनाव और आतंकवाद जैसे मुद्दों पर व्यापक चर्चा हुई।
पीएम मोदी की त्रिपक्षीय वार्ता: पुतिन और शी जिनपिंग के साथ क्या हुई चर्चा?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राष्ट्रपति पुतिन और राष्ट्रपति शी जिनपिंग से हुई मुलाकात को तीन स्तरों पर समझा जा सकता है:
- राजनीतिक संदर्भ – यह मुलाकात उस समय हुई है जब विश्व राजनीति पश्चिम बनाम पूर्व की खींचतान से गुजर रही है।
- आर्थिक दृष्टिकोण – भारत-रूस ऊर्जा सहयोग और भारत-चीन व्यापार संबंध दोनों ही इस मुलाकात का अहम पहलू रहे।
- रणनीतिक आयाम – भारत ने साफ संकेत दिया है कि वह एक “मल्टी-अलाइन” नीति पर काम कर रहा है, यानी सभी देशों से संतुलित रिश्ते रखना चाहता है।
पीएम मोदी और पुतिन की बॉडी लैंग्वेज काफी सकारात्मक दिखी। दोनों नेताओं ने रक्षा, ऊर्जा और व्यापार साझेदारी पर जोर दिया। वहीं, शी जिनपिंग के साथ पीएम मोदी की मुलाकात अपेक्षाकृत औपचारिक रही, लेकिन दोनों ने सीमा प्रबंधन, व्यापार और बहुपक्षीय सहयोग पर चर्चा की।
भारत-रूस संबंध: पुतिन-मोदी मुलाकात का महत्व
भारत और रूस दशकों से घनिष्ठ साझेदार रहे हैं। शीत युद्ध के दौर से लेकर आज तक रूस भारत का भरोसेमंद सहयोगी रहा है।
- रक्षा क्षेत्र में साझेदारी – भारत की 60% से अधिक रक्षा आपूर्ति रूस से होती रही है।
- ऊर्जा सहयोग – रूस भारत को कच्चे तेल का बड़ा आपूर्तिकर्ता है।
- स्पेस और न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी – दोनों देशों ने अंतरिक्ष और परमाणु ऊर्जा में भी सहयोग बढ़ाया है।
यूक्रेन युद्ध के बाद जब पश्चिमी देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगाए, तब भारत ने रूस से सस्ता तेल खरीदकर अपने हित साधे। इसने दोनों देशों के बीच आर्थिक रिश्तों को और मजबूत किया।
तियानजिन में हुई मोदी-पुतिन मुलाकात ने यह संदेश दिया कि भारत रूस को लेकर किसी पश्चिमी दबाव में नहीं आने वाला।
भारत-चीन संबंध: चुनौतियाँ और अवसर
भारत-चीन रिश्ते हमेशा उतार-चढ़ाव से भरे रहे हैं।
- सीमा विवाद – गलवान घाटी की घटना के बाद रिश्तों में तनाव आया।
- आर्थिक सहयोग – विवादों के बावजूद चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है।
- SCO जैसे मंच – भारत और चीन, दोनों ही संगठन के अहम सदस्य हैं और क्षेत्रीय शांति के लिए संवाद जरूरी है।
तियानजिन मुलाकात में पीएम मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने व्यापार, कनेक्टिविटी और आतंकवाद विरोधी सहयोग पर चर्चा की। हालांकि, सीमा विवाद पर कोई ठोस प्रगति की जानकारी सामने नहीं आई।
भारत के लिए SCO क्यों अहम है?
- क्षेत्रीय सुरक्षा – आतंकवाद और कट्टरपंथ से निपटने में SCO का मंच मददगार है।
- ऊर्जा सुरक्षा – मध्य एशिया ऊर्जा संसाधनों से समृद्ध है, और भारत के लिए यह क्षेत्र रणनीतिक महत्व रखता है।
- आर्थिक सहयोग – भारत व्यापार, निवेश और कनेक्टिविटी बढ़ाना चाहता है।
- राजनयिक संतुलन – SCO में भारत, रूस और चीन के साथ-साथ पाकिस्तान भी सदस्य है, जिससे यह मंच कूटनीतिक दृष्टि से चुनौतीपूर्ण और अहम बनता है।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य: अमेरिका और यूरोप की नजरें
भारत, रूस और चीन की त्रिपक्षीय वार्ता ने पश्चिमी देशों का ध्यान अपनी ओर खींचा है।
- अमेरिका और यूरोप चाहते हैं कि भारत रूस से दूरी बनाए।
- वहीं, भारत का रुख स्पष्ट है – “राष्ट्रीय हित सर्वोपरि।”
- भारत की विदेश नीति अब “नॉन-अलाइन” से आगे बढ़कर “मल्टी-अलाइन” हो चुकी है।
इसका मतलब है कि भारत हर मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है – चाहे वह SCO हो, BRICS हो या G20।
सोशल मीडिया पर चर्चा
पीएम मोदी द्वारा एक्स पर साझा की गई तस्वीर ने सोशल मीडिया पर हलचल मचा दी।
- समर्थकों ने इसे भारत की बढ़ती ताकत का प्रतीक बताया।
- विपक्षी दलों ने सवाल उठाए कि चीन के साथ सीमा विवाद के बावजूद इतनी गर्मजोशी क्यों?
- विदेश नीति विशेषज्ञों ने कहा कि यह मुलाकात भारत की “बैलेंस्ड डिप्लोमेसी” का उदाहरण है।
भविष्य की संभावनाएँ
- ऊर्जा सहयोग – रूस से भारत की तेल और गैस आयात बढ़ सकता है।
- डिजिटल साझेदारी – भारत और चीन तकनीकी क्षेत्र में प्रतिस्पर्धी होने के बावजूद सहयोग भी कर सकते हैं।
- आतंकवाद विरोधी सहयोग – SCO का मुख्य एजेंडा यही है, और भारत इसे अपने हित में देखता है।
- रणनीतिक संतुलन – एशिया में भारत एक “स्टेबलाइजिंग पावर” के रूप में उभर रहा है।
तियानजिन में आयोजित SCO शिखर सम्मेलन 2025 भारत की विदेश नीति और कूटनीतिक ताकत का बेहतरीन उदाहरण बनकर उभरा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राष्ट्रपति पुतिन और राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात न केवल त्रिपक्षीय संबंधों की मजबूती को दर्शाती है, बल्कि यह भी साबित करती है कि भारत अब वैश्विक राजनीति का एक केंद्रीय खिलाड़ी है।
यह मुलाकात आने वाले समय में ऊर्जा सुरक्षा, व्यापारिक सहयोग और क्षेत्रीय शांति स्थापित करने की दिशा में अहम साबित हो सकती है।
SCO की आधिकारिक वेबसाइट → http://eng.sectsco.org/