बिहार मतदाता सूची गहन पुनरीक्षण में सामने आया बड़ा आंकड़ा
बिहार मतदाता सूची गहन पुनरीक्षण के पहले चरण में चुनाव आयोग को बड़ी सफलता हाथ लगी है। पुनरीक्षण के तहत यह खुलासा हुआ है कि करीब 36 लाख मतदाता अब वोटर लिस्ट में नहीं हैं। इनमें से अधिकतर या तो दूसरे राज्यों में स्थायी रूप से पलायन कर चुके हैं या मृत पाए गए हैं।
बिहार मतदाता सूची गहन पुनरीक्षण क्या है और क्यों ज़रूरी है?
यह एक विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान (Special Intensive Revision – SIR) है, जो चुनाव आयोग द्वारा चलाया गया है ताकि वोटर लिस्ट को अपडेट और निष्पक्ष बनाया जा सके। इसमें प्रत्येक मतदाता से गणना फॉर्म मंगवाया गया और वर्तमान सूची से मिलान किया गया।
पुनरीक्षण के प्रमुख आंकड़े:
- कुल वोटर: 7.9 करोड़ (अनुमानित)
- प्राप्त फॉर्म: 7.24 करोड़ (91.69%)
- पलायन करने वाले मतदाता: 35 लाख+
- मृतक मतदाता: 22 लाख+
- डुप्लीकेट नाम: 7 लाख+
पलायन और मृत मतदाताओं की सूची साझा की गई
चुनाव आयोग ने 20 जुलाई को यह आंकड़े सभी 12 मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के साथ साझा कर दिए। इनमें वे नाम शामिल हैं:
- जो मतदाता फॉर्म नहीं भर पाए
- जिनका पता अब मौजूद नहीं है
- जो स्थायी रूप से पलायन कर गए
- या जिनका निधन हो चुका है
यह पारदर्शिता चुनाव सुधारों की दिशा में बड़ा कदम है।
क्या नाम हटना नागरिकता खत्म होना है? जानिए सच
बिहार मतदाता सूची गहन पुनरीक्षण के चलते मतदाता सूची से नाम हटने की खबरों पर प्रतिक्रिया देते हुए आयोग ने साफ कहा:
“अगर किसी व्यक्ति का नाम मतदाता सूची से हटता है, तो इसका मतलब यह नहीं कि उसकी नागरिकता समाप्त हो गई है।”
मतदाता सूची अद्यतन करना एक प्रशासनिक प्रक्रिया है। आयोग को संवैधानिक अधिकार है कि वह नागरिकता से जुड़े दस्तावेज मांग सके ताकि मताधिकार सुनिश्चित किया जा सके।
⚖️ सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई: 28 जुलाई को होगी अहम बहस
इस विशेष पुनरीक्षण के खिलाफ कुछ संगठनों और नागरिकों द्वारा याचिकाएं दायर की गई हैं, जिन पर 28 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। याचिकाओं में आरोप लगाए गए हैं कि:
- प्रक्रिया पारदर्शी नहीं है
- कुछ समुदायों को टारगेट किया गया
- दस्तावेज मांगना असंवैधानिक है
अब यह कोर्ट तय करेगा कि चुनाव आयोग की यह कार्यवाही संवैधानिक दायरे में आती है या नहीं।
🗳️ बिहार मतदाता सूची गहन पुनरीक्षण का राजनीतिक और चुनावी असर
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम बिहार विधानसभा चुनाव 2025 और लोकसभा चुनाव 2029 की पृष्ठभूमि तैयार कर रहा है। इस पुनरीक्षण से:
- फर्जी वोटर हटेंगे
- डुप्लीकेट नाम समाप्त होंगे
- चुनाव अधिक स्वच्छ और पारदर्शी होंगे
🔍 विश्लेषण: क्या यह सुधार है या पलायन की चिंता?
जहां चुनाव आयोग इसे सफलता मान रहा है, वहीं 35 लाख लोगों के पलायन के आंकड़े बिहार के सामाजिक और आर्थिक हालात पर भी सवाल खड़े करते हैं। यह दिखाता है कि बड़ी संख्या में लोग रोज़गार या अन्य कारणों से राज्य छोड़ रहे हैं।
एक निर्णायक लेकिन संवेदनशील कदम
बिहार मतदाता सूची गहन पुनरीक्षण, चुनाव प्रणाली को सुधारने की दिशा में एक ठोस प्रयास है। लेकिन यह भी जरूरी है कि प्रक्रिया में संवेदनशीलता, पारदर्शिता और संविधान का पालन सुनिश्चित किया जाए। आने वाले दिनों में सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस पूरी प्रक्रिया की वैधता को तय करेगा।
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लेखक: मोहन कुमार, एडवोकेट