बिहार: भागलपुर में वोटर लिस्ट में दो पाकिस्तानी महिलाओं के मिले नाम

लेखक: एडवोकेट मोहन कुमार | तिथि: 25 अगस्त 2025 | नई दिल्ली

बड़ी खबर: वोटर लिस्ट में घुसपैठ का मामला

बिहार के भागलपुर जिले से एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है। मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण के दौरान दो पाकिस्तानी महिलाओं के नाम वोटर लिस्ट में पाए गए। और तो और, उनके पास वैध आधार कार्ड और वोटर आईडी भी मौजूद हैं। इस खुलासे ने न केवल स्थानीय प्रशासन बल्कि केंद्रीय एजेंसियों को भी चौंका दिया है।

जांच में पता चला है कि ये दोनों महिलाएं बीते कई वर्षों से न केवल भारत में रह रही थीं, बल्कि मतदान भी कर रही थीं। यह लोकतंत्र की पवित्र प्रक्रिया पर गहरा सवाल खड़ा करता है।

कौन हैं ये दोनों पाकिस्तानी महिलाएं?

जांच रिपोर्ट के अनुसार:

  • दोनों महिलाएं भागलपुर शहर के भीखनपुर मोहल्ले में रह रही थीं।
  • इनका मूल निवास पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के खुशाब जिले के रंगपुर गांव में है।
  • पहली महिला फिरदौसिया जनवरी 1956 में तीन महीने के वीजा पर भारत आई थीं।
  • दूसरी महिला इमराना उसी साल तीन साल के वीजा पर भारत पहुंचीं।
  • वीजा की अवधि खत्म होने के बाद भी दोनों भारत में अवैध रूप से रह रही थीं और भूमिगत होकर नागरिक दस्तावेज भी बनवा लिए।

प्रशासन और चुनाव आयोग की त्वरित कार्रवाई

मामला सामने आने के बाद गृह मंत्रालय और चुनाव आयोग तुरंत हरकत में आए।

  • दोनों महिलाओं के नाम मतदाता सूची से हटाने का निर्देश जारी हुआ।
  • स्थानीय प्रशासन से विस्तृत जांच रिपोर्ट तलब की गई।
  • बूथ लेवल अफसर फरजाना खानम ने पुष्टि की कि उन्हें विभाग से आदेश मिला है और फॉर्म-7 भरकर नाम हटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।
  • भागलपुर के जिलाधिकारी ने कहा कि कार्रवाई नियमों के तहत हो रही है और जांच जारी है।

कानूनी पहलू और सुरक्षा पर सवाल

यह मामला केवल प्रशासनिक लापरवाही तक सीमित नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा पर भी गंभीर सवाल उठाता है। भारत में रह रहे विदेशी नागरिकों को मतदाता सूची में शामिल करना अपराध है।

भारत के कानून के अनुसार:

  • भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत किसी भी विदेशी को मताधिकार नहीं मिल सकता।
  • वोटर लिस्ट में नाम शामिल होना केवल भारतीय नागरिकों का अधिकार है।
  • अगर किसी विदेशी के नाम वोटर लिस्ट में पाए जाते हैं, तो संबंधित अधिकारियों पर भी जिम्मेदारी तय की जा सकती है

पृष्ठभूमि: कैसे मिलते हैं फर्जी दस्तावेज?

भारत में पहले भी कई मामलों में देखा गया है कि विदेशी नागरिक फर्जी दस्तावेज़ बनवाकर यहां रहते हैं।

  • आधार कार्ड और वोटर आईडी जैसे दस्तावेज़ स्थानीय स्तर पर मिलीभगत से जारी हो जाते हैं।
  • फर्जी दस्तावेजों के जरिए सरकारी योजनाओं का लाभ भी उठाया जाता है।
  • कई बार यह मामला आतंकी गतिविधियों और अवैध घुसपैठ से भी जुड़ जाता है।

विपक्ष और सियासी प्रतिक्रिया

इस घटना के बाद विपक्षी दलों ने सरकार पर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। उनका कहना है:

  • सरकार की बॉर्डर मैनेजमेंट नीति पूरी तरह विफल है।
  • अगर पाकिस्तानी महिलाएं वोटर लिस्ट में शामिल हो सकती हैं, तो यह राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ है।
  • केंद्र और राज्य सरकार को तुरंत इस पर जवाब देना चाहिए

वहीं, सत्ताधारी दल का कहना है कि जांच में दोषी अधिकारियों को कड़ी सजा दी जाएगी और यह एक isolated मामला है।

जनता की राय

स्थानीय नागरिकों ने भी इस मामले पर नाराज़गी जताई है। भीखनपुर मोहल्ले के एक निवासी ने कहा:

“हम लोग सालों से वोट डालते हैं, लेकिन हमें कभी नहीं पता था कि हमारे मोहल्ले में रह रही ये महिलाएं पाकिस्तानी हैं और भारत की वोटर लिस्ट में नाम जुड़ चुका है।”

विशेषज्ञों की राय

चुनावी विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला भारतीय चुनावी प्रणाली में सिस्टमेटिक खामी को उजागर करता है।

  • वोटर लिस्ट में नाम जोड़ने की प्रक्रिया को और कड़ा और पारदर्शी बनाने की जरूरत है।
  • आधार और वोटर आईडी को जोड़ने से पहले गहन जांच अनिवार्य होनी चाहिए।
  • हर जिले में समय-समय पर विशेष सत्यापन अभियान चलाया जाना चाहिए।

अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण

यह मामला अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी चिंता पैदा कर सकता है।

  • पाकिस्तान मूल की महिलाओं का भारतीय वोटर लिस्ट में होना, दोनों देशों के बीच कूटनीतिक विवाद को जन्म दे सकता है।
  • संयुक्त राष्ट्र और अंतर्राष्ट्रीय चुनाव पर्यवेक्षकों की नजर भी इस मामले पर पड़ सकती है।

अब तक की कार्रवाई

  1. दोनों पाकिस्तानी महिलाओं के नाम वोटर लिस्ट से हटाने का आदेश।
  2. गृह मंत्रालय और चुनाव आयोग ने संयुक्त जांच शुरू की।
  3. स्थानीय प्रशासन से 7 दिन के अंदर रिपोर्ट मांगी गई।
  4. दस्तावेज जारी करने वाले अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जा रही है।

राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव

यह मामला केवल चुनावी गड़बड़ी तक सीमित नहीं है, बल्कि सामाजिक स्तर पर भी बड़ा असर डाल सकता है। स्थानीय लोगों में यह खबर तेजी से फैली और इससे असुरक्षा की भावना भी बढ़ रही है। नागरिकों को डर है कि अगर विदेशी नागरिकों को इस तरह पहचान पत्र मिल सकते हैं, तो यह भविष्य में आंतरिक सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती साबित हो सकता है।

खुफिया एजेंसियों की भूमिका

सूत्रों का कहना है कि खुफिया एजेंसियां भी इस मामले की गहराई से जांच कर रही हैं।

  • यह पता लगाया जा रहा है कि क्या दोनों महिलाओं के तार किसी आतंकी संगठन से जुड़े थे।
  • क्या उन्होंने भारत में रहते हुए किसी संवेदनशील जानकारी तक पहुंच बनाई।
  • क्या इस तरह के और भी मामले देश के अन्य हिस्सों में मौजूद हैं।

ऐतिहासिक संदर्भ

भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद से ही बड़ी संख्या में लोग इधर-उधर बस गए। कई बार यह तय करना मुश्किल हो गया कि कौन भारतीय है और कौन विदेशी।

  • 1971 के बांग्लादेश युद्ध के दौरान भी भारत में बड़ी संख्या में अवैध शरणार्थी आए थे।
  • असम में NRC (National Register of Citizens) इसी तरह की समस्याओं को दूर करने का प्रयास था।
  • भागलपुर का यह मामला बताता है कि समस्या केवल पूर्वोत्तर तक सीमित नहीं है, बल्कि उत्तर भारत में भी इसकी जड़ें हैं।

समाधान और आगे की राह

विशेषज्ञों का सुझाव है:

  • वोटर लिस्ट को आधार और पासपोर्ट डाटाबेस से री-वेरीफाई किया जाए।
  • सीमा क्षेत्रों में विशेष रूप से बायोमेट्रिक वेरीफिकेशन लागू हो।
  • वोटर रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया को पूरी तरह से डिजिटल और ट्रांसपेरेंट बनाया जाए।
  • दोषी अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए ताकि भविष्य में कोई हिम्मत न कर सके।

भागलपुर से सामने आया यह मामला केवल एक जिला या दो महिलाओं तक सीमित नहीं है। यह घटना बताती है कि भारत की वोटर लिस्ट में अभी भी गंभीर खामियां हैं, जिन्हें दूर करने की जरूरत है। लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत मतदान प्रणाली है और इसमें किसी भी तरह की लापरवाही लोकतंत्र की जड़ें कमजोर कर सकती है।

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