बिहार की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में “जीविका दीदी” आज बदलाव का प्रतीक बन चुकी हैं। स्वयं सहायता समूहों (Self Help Groups – SHG) के जरिए संगठित हुई ये महिलाएं अब न सिर्फ़ अपने परिवार को आर्थिक सहारा दे रही हैं बल्कि सामाजिक नेतृत्व भी संभाल रही हैं।
राज्य और केंद्र सरकार की कई योजनाओं—मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना, जीविका निधि क्रेडिट कोऑपरेटिव, दीदी की रसोई, सतत जीविकोपार्जन योजना (SJY)—ने इनके जीवन में नई रोशनी भर दी है।
लेकिन, इस उजाले के बीच भ्रष्टाचार की परछाई भी दिख रही है। कई रिपोर्टों में सामने आया है कि कई जगहों पर समूह के अध्यक्ष या सचिव (CMs – Community Mobilizers) 1000–2000 रुपये तक की अनियमित वसूली कर रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या योजनाओं का असली लाभ महिलाओं तक पहुँच रहा है?
जीविका योजना का संक्षिप्त इतिहास और महत्व
बिहार ग्रामीण आजीविका परियोजना (BRLPS), जिसे “जीविका” के नाम से जाना जाता है, 2006 में शुरू हुई। इसका उद्देश्य था—
- ग्रामीण गरीब महिलाओं को संगठित करना।
- उन्हें वित्तीय सेवाओं (बचत, ऋण, बैंक लिंकेज) से जोड़ना।
- स्वरोजगार और छोटे उद्यमों के जरिए आय में बढ़ोतरी करना।
आज बिहार में 1 करोड़ से अधिक महिलाएँ जीविका से जुड़ी हुई हैं। यही “जीविका दीदी” गांव-गांव में आत्मनिर्भरता का नया चेहरा बन चुकी हैं।
मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना
- प्रत्येक परिवार की एक महिला को ₹10,000 की शुरुआती सहायता राशि।
- छह महीने बाद व्यवसाय की प्रगति पर ₹2 लाख तक का सहयोग।
- उद्देश्य: महिलाओं को छोटे व्यवसाय, दुकान, पशुपालन, या सेवा क्षेत्र में खड़ा करना।
जीविका निधि क्रेडिट कोऑपरेटिव
- प्रधानमंत्री ने हाल ही में “बिहार राज्य जीविका निधि” की शुरुआत की।
- कुल फंड: ₹1,000 करोड़।
- पहली किस्त: ₹105 करोड़ जारी।
- लक्ष्य: महिलाओं को आसान शर्तों पर ऋण उपलब्ध कराना।
दीदी की रसोई
- अस्पतालों, स्कूलों, पुलिस ट्रेनिंग कैंप और सरकारी कार्यालयों में भोजन सेवा।
- हाल ही में सरकार ने 21,000 नए सिपाहियों के लिए भोजन व्यवस्था जीविका दीदियों के हाथ में सौंपी है।
- इससे हजारों महिलाओं को स्थायी रोजगार मिलेगा।
सतत जीविकोपार्जन योजना (SJY)
- 2018 से चल रही योजना।
- सबसे गरीब परिवारों को संसाधन, प्रशिक्षण, और पूंजी उपलब्ध कराना।
- अब तक 1.5 लाख से अधिक परिवारों तक पहुंच।
रोजगार के बढ़ते अवसर
जीविका दीदियों के लिए रोज़गार के क्षेत्र अब खेती, डेयरी, मछली पालन, मशरूम उत्पादन, हस्तशिल्प, मधुबनी पेंटिंग, पौधशाला और सौर ऊर्जा तक फैल चुके हैं।
दीदी हाट जैसे कार्यक्रम स्थानीय उत्पादों को बाज़ार उपलब्ध करा रहे हैं। कई जगहों पर दीदियाँ मोबाइल बैंकिंग कॉरेस्पॉन्डेंट भी बनी हैं।
भ्रष्टाचार की परछाई – 1000 से 2000 रुपये की वसूली
जहाँ एक ओर योजनाएँ महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रही हैं, वहीं दूसरी ओर भ्रष्टाचार की शिकायतें भी लगातार सामने आ रही हैं।
कई ग्रामीण क्षेत्रों से रिपोर्ट है कि:
- SHG समूहों में जब महिला सदस्य नए ऋण या सहायता राशि लेती हैं, तो समूह के अध्यक्ष/CM उनसे 1000–2000 रुपये की अवैध वसूली कर लेते हैं।
- यह रकम कभी “प्रोसेसिंग फीस” तो कभी “कमेटी खर्च” के नाम पर ली जाती है।
- गरीब महिलाओं को मजबूरी में यह रकम देनी पड़ती है क्योंकि उन्हें पैसे की जरूरत होती है।
महिलाओं की पीड़ा
एक जीविका दीदी (नाम गोपनीय) बताती हैं:
“हमको 10,000 का ऋण मिला, लेकिन उसमें से 1500 रुपये समूह की दीदी ने ‘रजिस्ट्रेशन खर्च’ के नाम पर ले लिए। अगर नहीं देते, तो लोन पास नहीं होता।”
प्रशासनिक प्रतिक्रिया
- कई जिलों में ऐसी शिकायतों की जांच चल रही है।
- BRLPS का कहना है कि यह प्रैक्टिस “अनुचित” है और दोषी पाए जाने पर कार्रवाई होगी।
- लेकिन, ज़मीनी स्तर पर निगरानी की कमी से यह प्रथा अभी भी जारी है
विशेषज्ञों की राय
ग्रामीण विकास विशेषज्ञ मानते हैं कि:
- योजनाओं का ढांचा मजबूत है।
- लेकिन पारदर्शिता और निगरानी बढ़ाना जरूरी है।
- “जीविका दीदी” की सफलता तभी टिकाऊ होगी जब भ्रष्टाचार की जड़ों पर चोट की जाए।
आगे की राह
- पारदर्शी सिस्टम: हर लेन-देन को डिजिटली ट्रैक करना।
- ग्रिवांस मैकेनिज़्म: महिलाओं के लिए शिकायत दर्ज करने की आसान सुविधा।
- प्रशिक्षण और जागरूकता: दीदियों को उनके अधिकारों और प्रक्रियाओं की जानकारी देना।
- सख्त कार्रवाई: भ्रष्टाचार में लिप्त कर्मचारियों पर तुरंत कार्रवाई।
बिहार में जीविका दीदियों की कहानी एक ओर सशक्तिकरण और आत्मनिर्भरता की है, वहीं दूसरी ओर भ्रष्टाचार और अनियमितताओं की भी है।
अगर सरकार और समाज मिलकर पारदर्शिता सुनिश्चित करें, तो जीविका योजना न सिर्फ़ बिहार बल्कि पूरे देश के लिए महिला सशक्तिकरण का मॉडल बन सकती है।
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